लेखनी कविता - मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर - ग़ालिब

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मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर / ग़ालिब मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर रख ली मिरे ख़ुदा ने मिरी बेकसी की शर्म वह हल्क़ा-हा-ए-ज़ुल्फ़ कमीं में ...

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